રવિવાર, 9 સપ્ટેમ્બર, 2012
सब्र अब कैसे करे?
इस दिल के शहर को बेदर्दी से, बे-शहर कर दिया तुमने,
खुदा से मागी दुआओं को भी, बे-असर कर दिया तुमने,
मुन्तजिर बना के रख दिया पूरी जिंदगानी को हमारी,
इन्तजार की सोच से भी हमें, बे-खबर कर दिया तुमने,
यूँ तो रहते थे तुम्हारी गलियों में अहेसास न था घरका,
किसी और का घर बसा कर हमें बे-घर कर दिया तुमने,
आयना दिखाया था तुम्हे, खुद को पहेचानने के वास्ते,
पहेचान के बावजूद खुद ही को, बे-नजर कर दिया तुमने,
सब्र अब कैसे करे? कब्र तक पहोच गयी मंजिल हमारी,
आने का वादा करके आये नहीं, बे-सबर कर दिया तुमने |
नीशीत जोशी 05.09.12
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