મંગળવાર, 25 સપ્ટેમ્બર, 2012

एक ही इल्तजा

गुम हो कर किसी कुचे में खो जायेंगे ! मिटटी के है मिटटी में जब सो जायेंगे !! ख्वाइश थी, छू लिया बुलंदीओ को भी ! जमीं के थे और जमीं के ही हो जायेंगे !! नहला कर पहना दिया है नया लिबास ! रकीब भी अब करीब आ कर रो जायेंगे !! एक पौधा जिसे उखाड़ फेका है लोगो ने ! कोशिश करके प्यार का बीज बो जायेंगे !! एक ही इल्तजा रखी थी जो पूरी होगी ! तेरे थे, तेरे ही आगोश में अब सो जायेंगे !! नीशीत जोशी 24.09.12

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