સોમવાર, 19 સપ્ટેમ્બર, 2011

इश्क करनेकी सजा


तुजसे इश्क करनेकी सजा पाली हमने,
ये दिल पे अनगीनत चोट खाली हमने,

तीर चलानेका शीलशीला देर तक चला,
हर नीशानेको सीनेपे लेनेकी ठानी हमने,

थक तो गये थे उनके हाथ बहोत फिरभी,
मुश्कील थी रुक जानेकी बात जानी हमने,

आंखो मे नमी तो उनको भी आयी होगी,
बादलोको कहके बरसात रोक डाली हमने,

अब सुना है घाव पे मल्हम लगाने आयेंगे,
नासूरका इलाज होगा यह बात मानी हमने,

उन कांटॉके चुभने का दर्द अब भुल जायेंगे,
हाथोमें आये गुलाबकी रुहको पहेचानी हमने ।

नीशीत जोशी 17.09.11

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