मै ऐसा कलंदर हुं जो हर सिकंदरको मात करदु,
न देखी न सोची हो कायनातमे वो करमात करदु,
मै वोह खुशनुमा हवा हुं, मै सभी बागोकी बहार हू,
अमावस्याकी कालीरातको पुर्णीमाके जज्बात भरदु,
जलजला हुं ऐसा समंन्दरभी हैरान हो जाये जोंकोसे,
ओसको बनाके नदी,समन्दरके संग ताल्लुकात करदु,
महोब्बत करनेवालोका खुदा,नबी इबादत करनेवालोका,
मै फरिस्ता बनके दिवानोके सिफारीसकी बात करदु,
मै खुदा,अब इन्सानीयतका एक ही मजहब रखना है,
मेरे बनाये हुए इस इन्सानको इन्सानकी जात करदु ।
नीशीत जोशी 22.09.11
રવિવાર, 25 સપ્ટેમ્બર, 2011
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