રવિવાર, 25 સપ્ટેમ્બર, 2011
कभी तुम कभी तुम्हारी यादे
कभी तुम कभी तुम्हारी यादे खटकती है,
कभी तु कभी तुम्हारी पायल खनकती है,
आंखको बंध रख कहां तक बैठु बताओ तो,
सामने आके तु या तुम्हारी रुह मटकती है,
दिलको भी कभी समजाके चुप तो करा देते,
किससे कहे धडकन तेरे नामकी धडकती है,
दर पे खडे अभी राह नीहारती रहे ये आंखे,
दौडे पडे सुन आवाज जो कानोमे भनकती है,
मौसम बदल गये बसंतभी फिरसे आने लगी,
आनेकी खुशीमें कब्रकी मीट्टीभी सरकती है ।
नीशीत जोशी 20.09.11
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