રવિવાર, 1 જુલાઈ, 2012

"शीर्षक अभिव्यक्ति" में उनवान ***मुसाफिर/यात्री/पथिक/राहगीर/राही/बटोही*** पर रचना...

न साथ कभी चलाया राहगीर बने तब से, जहां ने ऐसा सताया राहगीर बने तब से, न करते हम जुरुरत राही बनने की कभी, फरेब से दिल जलाया राहगीर बने तब से, बिछाये कांटे हर राह और कहा साथ चलो, कंटक को फूल बनाया राहगीर बने तब से, कुछ दुर साथ चल, छोड गये अन्जान राह, किसीने रास्ता न बताया राहगीर बने तब से, अंधेरो से कही उसे डर न लग जाये उस पथ, जुगनु को हमने ही जगाया राहगीर बने तब से । नीशीत जोशी 26.06.12

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