રવિવાર, 22 જુલાઈ, 2012

ऐसे तो न थे कान्हा

द्वारिका जाके, की सोलाह हजार रानियाँ, क्यों याद न आयी राधा संगकी शगाइयां? वृन्दावनमें करना था जब रास नृत्य तुम्हे, तबतो बीन राधाके लेते थे तुम अंगडाइयां, ऐसे तो जताते थे प्यार बेहिसाब राधा से, फिर क्यों पास भी न भटकने दी परछाइयां, ऐसे तो न थे कान्हा तुम हमारे वो वृज में, विरह दर्द दे के क्यों नहीं देते तुम दवाइयां? दुनिया करे पूजा, राधा को दिए वरदान से, पर दिल का क्या?न समजी तुने कठिनाइयां | नीशीत जोशी 15.07.12

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