રવિવાર, 22 જુલાઈ, 2012

प्यास जो बुज़ा न सकी

प्यास जो बुज़ा न सकी उसकी रवानी होगी, रेत पे लिखी हुई कोई वो मेरी कहानी होगी, वक्त उन अल्फाजो का मफ़हूम बदल देता है, देखते ही देखते उनकी हर बात पुरानी होगी, कर गई थी जो मेरी पलको के सितारे रोशन, वो ढलते हुए सूरज की कोई निशानी होगी, फिर अँधेरे में न खो जाए कही उसकी सदा, दिल के आँगन में नयी रोशनी जलानी होगी, अपने ख्वाबो की तरह ये बिखरे टूटे हुए फुल, चुन रहे है शायद कोई तस्वीर बनानी होगी, बेजुबान कर गया मुजको सवालों का हुजूम, जिंदगी आज तुम्हे हर बात बतानी होगी, कर रही है जो मेरे उन अक्स को धुधला, मैंने दुनिया की कोई बात ना मानी होगी !!!! नीशीत जोशी 19.07.12

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