શનિવાર, 7 જુલાઈ, 2012
***बरसात/बारिश/वर्षा/बरखा/मेह/वृष्टि *** पर रचना...
"शीर्षक अभिव्यक्ति" में उनवान ***बरसात/बारिश/वर्षा/बरखा/मेह/वृष्टि *** पर रचना...”
बारिश में आज दिल हुआ तन्हा बहोत,
भींज के बरसात को आज सहा बहोत,
कोई जान न पाया मेरे रोने का शबब,
बरसात में आँखों से सैलाब बहा बहोत,
पूछा न किसीने चिराग जलने का सिला,
इस बरसात में बेबस ये दिल रहा बहोत,
होगी कोई मजबूरी जो चले गए बिन सुने,
बार-बार रुकने को मैंने उनसे कहा बहोत,
कसूर तो सिर्फ इतना ही था ऐ दोस्त मेरे,
उनको बेचारे ये नादाँ दिल ने चाहा बहोत |
नीशीत जोशी 04.07.12
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