
घर में राम की शंका और बाहार रावण का डर,
यही सोच में औरत की होती है जिन्दगी बसर,
माँ बनी,बेटी बनी,कभी बनी बहन तो कभी बहु,
सहती रहे जीवन भर रख के अपना नीचा सर,
माना आज की नारी में आया है बदलाव फिरभी,
मर्दाना समाज मे चलना पड़े संभल संभल कर,
हर काम की माहिर हो गयी है आज जमाने में,
मर्दके अहम् टूटने का आता उस पे बहोत असर,
बस अब बहोत हुआ !!!!!
डर तो आखिर डर है, क्योकि वो एक औरत है ?
नादाँ हो,भ्रम अब तोड़ देना,बचाना अब खुद घर,
जाग गयी है नारी , नहीं है वो अबला ना बेचारी,
ओ मर्द ! फितरत छोड़ना, न होना फिर वही बन्दर,
समय रहते तुम संभल जाओ छोड़ के वो अहम्,
सन्मान दो औरत को, इश्वर ने ही बनाए नारी-नर |
नीशीत जोशी 18.07.12
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