રવિવાર, 1 જુલાઈ, 2012

ओ क्रिष्ना !!!!

चीर पुरने की अब जरुरत न रह गयी, ओ क्रिष्ना, शिशुपाल की अनगीनत गालिया हुई, ओ क्रिष्ना, हर जगह जहां देखो मिलेंगे दूर्योधन अब तो यहाँ , दुशासन की भीम अब तो ढाल बनी, ओ क्रिष्ना, ध्रुतराष्ट्र बने फिरते है यहां पर हर कोई अब तो, कंश के अत्याचारो की सीमा न रही,ओ क्रिष्ना, इस नये जमानेमें नये महाभारत का इन्तजार है, अब किसकी पार्थ बनने की आयेगी बारी,ओ क्रिष्ना? नीशीत जोशी 30.06.12

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો