શનિવાર, 28 જુલાઈ, 2012
चाहत ना आजमाई होती
तुने मेरी चाहत ना आजमाई होती,
दिल पे यह खामोशी न छायी होती,
दो चार कदम अगर साथ चल लेते,
आज तेरे ही पीछे मेरी परछाई होती,
रुसवा कर के न तोड़ते दिल हमारा,
तेरी ही यादो में ना रात बिताई होती,
गर समज लेते आँखों की बात सब,
आँखोंने कभी ना बारिश बहाई होती,
इल्तजा थी प्यार की, सबुरी न थी,
मान लेते तो आज ना रुसवाई होती !
नीशीत जोशी 27.07.12
देख के तुजे
देख के तुजे आयना मगरूर क्यों हुआ,
ये चाँद भी छुपने पे मजबूर क्यों हुआ,
काशीद बन के आये थे ख्वाब रात को,
फिर ये चहेरा इतना मशहूर क्यों हुआ,
चला तजकिरा तेरी मूहोब्बत का यहाँ,
वो दास्ताँ खुदबखुद मज़कूर क्यों हुआ,
तुम प्यार से बना लेते हो सबको अपना,
कमाल है, रकीब भी मखमूर क्यों हुआ,
बनाये है हर चहेरे उसी आका ने जहाँ में,
खुदा को भूल के खुद मशकूर क्यों हुआ .
नीशीत जोशी 26.07.12
काशीद = खबर पहोचानेवाला , तजकिरा = जिक्र , मज़कूर = विवरण,मखमूर =नशे में चूर , मशकूर= आभारी
વર્ષો થઇ ગયા
પ્રેમપગલા ની શરુઆતને વર્ષો થઇ ગયા,
એ જીતેલી બાજીની માતને વર્ષો થઇ ગયા,
યાદને રાખી છે સાંચવી,ક્યારેક તો આવશે,
પુછેલા તેમના સવાલાતને વર્ષો થઇ ગયા,
કહેણ મોકલાવી તે પુછાવે છે કેમ છો તમે?
એક સાથે ગુજારેલી રાતને વર્ષો થઇ ગયા,
ખુમારી હજી તો ઉતરી નથી ચડેલા નશાની,
આંખોમાં ડુબ્યાની એ વાતને વર્ષો થઇ ગયા,
રીસાઇ જવાનુ હુન્નર ખુબ દેખાડ્યુ'તુ તમે તો,
અમે ભેગી કરેલી એ જમાતને વર્ષો થઇ ગયા.
નીશીત જોશી 25.07.12
એ રાત !
નવલી રાત વિતાવવા સપના મોકલજે,
સપનામાં અવાજ સમા ટહુકા મોકલજે,
જુદા જુદા ચિત્રો દેખાડવા બંધ કરો હવે,
રાતને એ તો નહોતુ કહ્યુ કેટલા મોકલજે,
કરજો એ મધુર મીલનની વાતો સ્વપ્ને,
ચાંદનીની સાટુ મનમીત ચંદ્રમા મોકલજે,
ઉંઘથી ન જાગી જવાય તે જોજે એ રાત !
પરોઢીયુ ન આવી શકે તે તાળા મોકલજે,
એ સપના પણ ન પડી જાય ઢીલા નીદરે,
તેને પણ રોજની માફક ઉજાગરા મોકલજે .
નીશીત જોશી 22.07.12
રવિવાર, 22 જુલાઈ, 2012
गुमशुदा जिन्दगी
गुमशुदा जिन्दगी वीराने में कट जाया करती है,
अपने परायोके बिच ज़मेलोमें बट जाया करती है,
सबक मिलते हुए भी गुमान में रह के जीनेवालो,
इन्सानकी जोली इंसानियतसे फट जाया करती है,
ये दौर चला है खुद की ही थाली में छेद करनेका,
दौलत के वास्ते रकीबसे दोस्ती सट जाया करती है,
मूहोब्बत भी हो गयी है हवस का एक खेल जहाँ में,
सच्ची मूहोब्बत होने से खुद ही नट जाया करती है,
सही नसीहत से तौबा करते है लोग इस दुनिया के,
कहीं कुछ कह दे तो जिन्दगी खुद हट जाया करती है |
नीशीत जोशी 20.07.12
प्यास जो बुज़ा न सकी
प्यास जो बुज़ा न सकी उसकी रवानी होगी,
रेत पे लिखी हुई कोई वो मेरी कहानी होगी,
वक्त उन अल्फाजो का मफ़हूम बदल देता है,
देखते ही देखते उनकी हर बात पुरानी होगी,
कर गई थी जो मेरी पलको के सितारे रोशन,
वो ढलते हुए सूरज की कोई निशानी होगी,
फिर अँधेरे में न खो जाए कही उसकी सदा,
दिल के आँगन में नयी रोशनी जलानी होगी,
अपने ख्वाबो की तरह ये बिखरे टूटे हुए फुल,
चुन रहे है शायद कोई तस्वीर बनानी होगी,
बेजुबान कर गया मुजको सवालों का हुजूम,
जिंदगी आज तुम्हे हर बात बतानी होगी,
कर रही है जो मेरे उन अक्स को धुधला,
मैंने दुनिया की कोई बात ना मानी होगी !!!!
नीशीत जोशी 19.07.12
सन्मान दो औरत को
घर में राम की शंका और बाहार रावण का डर,
यही सोच में औरत की होती है जिन्दगी बसर,
माँ बनी,बेटी बनी,कभी बनी बहन तो कभी बहु,
सहती रहे जीवन भर रख के अपना नीचा सर,
माना आज की नारी में आया है बदलाव फिरभी,
मर्दाना समाज मे चलना पड़े संभल संभल कर,
हर काम की माहिर हो गयी है आज जमाने में,
मर्दके अहम् टूटने का आता उस पे बहोत असर,
बस अब बहोत हुआ !!!!!
डर तो आखिर डर है, क्योकि वो एक औरत है ?
नादाँ हो,भ्रम अब तोड़ देना,बचाना अब खुद घर,
जाग गयी है नारी , नहीं है वो अबला ना बेचारी,
ओ मर्द ! फितरत छोड़ना, न होना फिर वही बन्दर,
समय रहते तुम संभल जाओ छोड़ के वो अहम्,
सन्मान दो औरत को, इश्वर ने ही बनाए नारी-नर |
नीशीत जोशी 18.07.12
बारिस में
मिली मुझे एक हसीं परी बारिस में,
भींजने की आयी मस्ती बारिस में,
खिलखिला के वोह हसती रही देख,
जब उड़ चली मेरी छतरी बारिस में,
देख के उस भिजती हुई कमसिन को,
दिल में अजीब लहर उठी बारिस में,
करिश्मा कहू या कहू उसे इत्तफाक,
नज़रो से नज़रे लड़ पड़ी बारिस में,
पलभर में हो गए एक दूजे के लिए,
इबादत शायद रंग लायी बारिस में,
वो प्यार की चढ़ी खुमारी बारिसमें,
उनसे हो गयी मूहोब्बत बारिस में |
नीशीत जोशी 16.07.12 …
ऐसे तो न थे कान्हा
द्वारिका जाके, की सोलाह हजार रानियाँ,
क्यों याद न आयी राधा संगकी शगाइयां?
वृन्दावनमें करना था जब रास नृत्य तुम्हे,
तबतो बीन राधाके लेते थे तुम अंगडाइयां,
ऐसे तो जताते थे प्यार बेहिसाब राधा से,
फिर क्यों पास भी न भटकने दी परछाइयां,
ऐसे तो न थे कान्हा तुम हमारे वो वृज में,
विरह दर्द दे के क्यों नहीं देते तुम दवाइयां?
दुनिया करे पूजा, राधा को दिए वरदान से,
पर दिल का क्या?न समजी तुने कठिनाइयां |
नीशीत जोशी 15.07.12
રવિવાર, 15 જુલાઈ, 2012
ફુલોથી ભરેલુ સ્મિત તુજને
ફુલોથી ભરેલુ સ્મિત તુજને,
મુજના ભાગે બસ એકલતા,
રમણીય સુંદર રાત તુજને,
મુજ ભાગે એ અંધારપટતા,
મળે એ સુવર્ણ સ્વપ્ન તુજને,
મુજ ભાગે ઘોરી અમાવસતા,
સ્વર્ગના સર્વ આનંદ તુજને,
મુજને એ નરકમાં વિરહતા,
જે હોય શ્રેષ્ટ સર્વ મળે તુજને,
મુજને જોઇએ યાદોની સુંદરતા.
નીશીત જોશી ૦૮-૦૫-૦૯ ///14.07.12
મુક્તક/ मुक्तक
http://nishitjoshi.files.wordpress.com/2012/07/woman.jpg?w=640&h=480
घर में राम की शंका और बाहार रावण का डर !
यही सोच में औरत की होती है जिन्दगी बसर !!
नीशीत जोशी 13.07.12
कोई तुमसे सीखे
सबसे प्यार जता के सताना कोई तुमसे सीखे,
चरणों पे गिर इश्क जताना कोई तुमसे सीखे,
रुसवा अगर हो जाए माशुक कभी आशिक से,
रूठे को हर बार कैसे मनाना कोई तुमसे सीखे,
मधुर धून बजा के रिजाते हो सब को मधुबनमें,
अपनी ही धून पे नाच नचाना कोई तुमसे सीखे,
ये मूहोब्बत के हर आयाम को बखूबी जानते हो,
रोती माशुक को कैसे हसाना कोई तुमसे सीखे,
ऐसे तो हम तुम्हारी तस्वीर लिए फिरते है यहाँ,
मगर दिदार न देने का बहाना कोई तुमसे सीखे |
नीशीत जोशी 12.07.12
शीर्षक अभिव्यक्ति" में उनवान ***सुमन/कुसुम/पुष्प/गुल/फूल*** पर रचना.
फूलो के ख़ुश्बू की महक तुम हो,
फरिस्तोने न देखी ज़लक तुम हो,
ये ह्रदय के जज्बात तुमसे है मेरे,
मेरी इस आँखों की पलक तुम हो,
सब की निगाहें तुज पर लगी रहे,
जहाँ की चमकदार चमक तुम हो,
वो पायल छनक उठे चलने पे तेरे ,
दिल के धड़कन की धड़क तुम हो,
पुष्प के गुलदस्ते भी बेजान लगे,
कुसुमके श्रृंगारकी कसक तुम हो,
तुम मेरे हमदम,मेरे हमसफ़र हो,
ऐ इश्वर!
हर दुसरे सांस की जबक तुम हो |
नीशीत जोशी 11.07.12
अनजान राह के मुसाफिर
पाबंधियो में इश्क करना मुझे तकलीफ देता है,
आँखों से अश्क का बहना मुझे तकलीफ देता है,
कैसे बसर कर पायेंगे अपनी ये लाचार जिंदगानी,
तेरे बगैर का सुनहरा सपना मुझे तकलीफ देता है,
सारी दुनिया के रूठने से मुझे कोई तकलीफ नहीं,
बस एक तेरा खामोश रहना मुझे तकलीफ देता है,
जानता हू मेरी तक़दीर के पन्ने अब लगे है उड़ने,
उन अंधे ख्वाबो का पलाना मुझे तकलीफ देता है,
अनजान राह के मुसाफिर बन गए है अब तो यहाँ,
हालात ये है फूलो पे चलाना मुझे तकलीफ देता है |
नीशीत जोशी 10.07.12
समर्पण
गोपी ने कहा :
रे सखी ! इस बांस के तुकडे की तकदीर पर देखे ,
हर वक्त उसे अपने कान्हा के अधर पर देखे,
दूसरी ने कहा :
रे सखी ! उस का समर्पण तो देख,
पूरा उसका समस्त अर्पण तो देख,
खडा था आसमान छूने,
न छू सका,
तो,
खुद तूटा,
शरीर को बना के खोखला,
समस्त अंगो को छेदवाया,
खुद की हस्ती मिटाई,
कान्हा की प्रीत जगाई,
रे सखी ! कौन कर पाता है ऐसा समर्पण,
सब कर दिया कान्हा को वैसा अर्पण,
यह कारण है,
प्यार से बजाते है बांसुरी का तर्रुन्नुम,
हम सब को भी दीवानी बनाए हरदम |
नीशीत जोशी 09.07.12
મલકાતા રહો
છેતરાણા માની મલકાતા રહો,
પ્રેમ કર્યો છે તે જણાવતા રહો,
અણસમજમાં કર્યુ વૃજને ગાંડુ,
હવે પ્રીતના સાદે આવતા રહો,
અધુરી લાગે જો પ્રેમ રીત મારી,
પ્રેમ-અર્થ આવી સમજાવતા રહો,
હશે લગન મુજ મગન તુજ સંગ,
આવવુ પડશે જ,ન સતાવતા રહો,
કરીએ શું છોડી વિલાપ મુજ મોહન,
વિરહાગ્નિમાં ન આમ તપાવતા રહો.
નીશીત જોશી 08.07.12
આંખોના વેધન
આંખોના વેધનથી વિધાંઇ ગયો છુ,
હ્રદયના તારો થકી સંધાઇ ગયો છુ,
કોને સંભળાવુ મુજ વ્યથાની વાતો,
વ્યથાથી જ જ્યારે બંધાઇ ગયો છુ,
ઉજાગરા કર્યા રાત્રે અજાણ્યા કાજે,
સરનામુ શોધતા હું મુંઝાઇ ગયો છુ,
ધોધમાર જામ્યો વરસાદ રસ્તામાં,
હું ઘરે જ યાદોમાં ભીંજાઇ ગયો છુ.
સ્વાર્થી દુનિયાથી વાકેફ થયો અને,
મુજથી હવે સ્વમાં સંતાઇ ગયો છુ .
નીશીત જોશી 07.07.12
શનિવાર, 7 જુલાઈ, 2012
अपना समजते रहे
रुसवा होते हुए भी तुम्हे अपना समजते रहे,
लगा के सिने से तेरी वो तस्वीर मचलते रहे,
हमारी तस्सवुरने तो माना था आओगे जरूर,
हर एक आहट पे धड़कन के संग धड़कते रहे,
इतिहास बना पाते अगर मुलाक़ात हो जाती,
हर गली हर शहर दिदार खातिर भटकते रहे,
छू लिया था कभी जिस कागज़ के फूलो को,
आज तक वो फूल तेरी खुश्बू से महकते रहे,
न तुम जान पाए हमें, न हम जान पाए तुम्हे,
कहानी कुछ ऐसी रही, सिर्फ पन्ने पलटते रहे |
निशित जोशी 06.07.12
तुजे ही तो जहाँ में अपना देखा
तुजे ही तो जहाँ में अपना देखा,
अपनो ने सिर्फ तेरा सपना देखा,
तेरे वो करिश्मे अभी बरकरार है,
दरिया में पत्थर का बहना देखा,
जन्म से कई हो जाते है अनाथ,
बिन माँ के बच्चे का पलना देखा,
तूफां आये चाहे आ जाए बरसात,
ऐसे में भी चराग का जलना देखा,
वो सुनहरी चाँदनी रात की खातिर,
हर शाम को सूरज का ढलना देखा |
नीशीत जोशी 05.07.12
***बरसात/बारिश/वर्षा/बरखा/मेह/वृष्टि *** पर रचना...
"शीर्षक अभिव्यक्ति" में उनवान ***बरसात/बारिश/वर्षा/बरखा/मेह/वृष्टि *** पर रचना...”
बारिश में आज दिल हुआ तन्हा बहोत,
भींज के बरसात को आज सहा बहोत,
कोई जान न पाया मेरे रोने का शबब,
बरसात में आँखों से सैलाब बहा बहोत,
पूछा न किसीने चिराग जलने का सिला,
इस बरसात में बेबस ये दिल रहा बहोत,
होगी कोई मजबूरी जो चले गए बिन सुने,
बार-बार रुकने को मैंने उनसे कहा बहोत,
कसूर तो सिर्फ इतना ही था ऐ दोस्त मेरे,
उनको बेचारे ये नादाँ दिल ने चाहा बहोत |
नीशीत जोशी 04.07.12
सोच के कदम रखना
ये दिवानो की महेफिल है, सोच के कदम रखना,
कहीं फिसले ना,ये दिल है, सोच के कदम रखना,
गहरा समुन्दर तो शायद तैरना मुमकीन हो मगर,
ये फिसलती बर्फिली झील है,सोच के कदम रखना,
फूल तो है मगर संग कांटो की भी है भरमार यहां,
यह ऐसी ही अजीब मंजील है,सोच के कदम रखना,
बचा न पायेगा कोइ ऐक बार डुब जाने के बाद यहां,
दुनिया के लोग सब संगदिल है,सोच के कदम रखना,
प्यार के नाम से आज भी इतराते है लोग इस जहां के,
संभल जाना,राह बडी मुश्किल है, सोच के कदम रखना ।
नीशीत जोशी 03.07.12
बंध करके कोटडी में
नादान समज कर मुजे डराया है तुमने,
हर नये आयाम से मुजे डुबाया है तुमने,
कहने को तो नया जमाना आ गया मगर,
समान हक दे करके मुजे सताया है तुमने,
पहले जमानेमें कुछ तो थी शरम आंखो में,
अब मेरी आबरु को सरेआम जताया है तुमने,
माँ बनी,बेटी बनी,बनी तेरी अर्धान्गनी,मगर,
अबला नारी समज कर मुजे दबाया है तुमने,
लिख लेते हो,बोल भी लेते हो मेरे बारे में अच्छा,
बंध करके कोटडी में खुबसुरत सजाया है तुमने ।
नीशीत जोशी 01.07.12
પોતા સામે
શબ્દો ના બાણ પણ ક્યારેક વાગે છે,
નજીવી બાબત પણ કુતુહલ લાગે છે,
સમણાંમાં જીવવાની આદત પડી જાય,
તો સુવર્ણ સપના પણ ક્યારેક જાગે છે,
મંદીર,મસ્જીદ,ગુરૂદ્વારે જાય તો છે લોકો,
સ્વાર્થ તલ્લીન સ્વ કાજે જ કંઇ માગે છે,
માણસ ચાલતા પણ પહોંચી શકે મુકામે,
આગળ નીકળવાની હોડે ક્યારેક ભાગે છે,
સન્માન,સ્વમાનની પરિભાષાથી અજાણ,
પોતાના પણ પોતા સામે બંધુક દાગે છે.
નીશીત જોશી 02.07.12
नादान समज कर मुजे डराया है तुमने,
हर नये आयाम से मुजे डुबाया है तुमने,
कहने को तो नया जमाना आ गया मगर,
समान हक दे करके मुजे सताया है तुमने,
पहले जमानेमें कुछ तो थी शरम आंखो में,
अब मेरी आबरु को सरेआम जताया है तुमने,
माँ बनी,बेटी बनी,बनी तेरी अर्धान्गनी,मगर,
अबला नारी समज कर मुजे दबाया है तुमने,
लिख लेते हो,बोल भी लेते हो मेरे बारे में अच्छा,
बंध करके कोटडी में खुबसुरत सजाया है तुमने ।
नीशीत जोशी 01.07.12
રવિવાર, 1 જુલાઈ, 2012
ओ क्रिष्ना !!!!
चीर पुरने की अब जरुरत न रह गयी, ओ क्रिष्ना,
शिशुपाल की अनगीनत गालिया हुई, ओ क्रिष्ना,
हर जगह जहां देखो मिलेंगे दूर्योधन अब तो यहाँ ,
दुशासन की भीम अब तो ढाल बनी, ओ क्रिष्ना,
ध्रुतराष्ट्र बने फिरते है यहां पर हर कोई अब तो,
कंश के अत्याचारो की सीमा न रही,ओ क्रिष्ना,
इस नये जमानेमें नये महाभारत का इन्तजार है,
अब किसकी पार्थ बनने की आयेगी बारी,ओ क्रिष्ना?
नीशीत जोशी 30.06.12
नही मीलता
इस जहाँ में किसीको अपना नही मीलता,
सबको सजाने वास्ते सपना नही मीलता,
उब भी गर जाओ बोझील जीन्दगानी से,
जब चाहे,जैसा चाहे, मरना नही मीलता,
किनारे पर बैठ के तांकते रहे जो संगम,
समंन्दर के नसीब, झरना नही मीलता,
परिन्दो को नाज है अपनी परवाझ पर,
फलक पे आशीयाना करना नही मीलता
जिगर को निकाल हथेली पे दिया उन्हे,
ऐसा बेपन्हा वो प्यार वरना नही मीलता ।
नीशीत जोशी 29.06.12
એક લાશ લઇને
જતો હતો એક લાશ લઇને મને નતી ખબર,
ઉપાડી'તી કોની લાશ કઇને મને નતી ખબર,
કફન ઉઘડશે અને આવો સાવ ભાંગી પડીશ,
અને હું રહીશ ખલાશ થઇને મને નતી ખબર,
જીવતર પણ જીવવુ ભારે થઇ પડશે આવુ તે,
સમય નીકળશે બદલો લઇને મને નતી ખબર.
નીશીત જોશી ૧૫.૦૩.૨૦૦૯ / 28.06.12
ना करो
वादियो में बनठन के यूं लहराया ना करो,
बीन मौसम में आसमान बरसाया न करो,
राही है पहोच जायेंगे तेरे बुतखाने तक तो,
सच्चे राहगीर को रास्ता समजाया न करो,
रकीब भी गर आये भटका मुसाफिर बनके,
चहेरा बीगाड कर नफरत फरमाया न करो,
बेहोशी बाद जब होश में आने की बात कहे,
एक और प्याला पीला के बहकाया न करो,
यह जीन्दगी जीने का तरिका सीख लिया,
आपसी रंजीस से अक्सर टकराया न करो ।
नीशीत जोशी 27.06.12
"शीर्षक अभिव्यक्ति" में उनवान ***मुसाफिर/यात्री/पथिक/राहगीर/राही/बटोही*** पर रचना...
न साथ कभी चलाया राहगीर बने तब से,
जहां ने ऐसा सताया राहगीर बने तब से,
न करते हम जुरुरत राही बनने की कभी,
फरेब से दिल जलाया राहगीर बने तब से,
बिछाये कांटे हर राह और कहा साथ चलो,
कंटक को फूल बनाया राहगीर बने तब से,
कुछ दुर साथ चल, छोड गये अन्जान राह,
किसीने रास्ता न बताया राहगीर बने तब से,
अंधेरो से कही उसे डर न लग जाये उस पथ,
जुगनु को हमने ही जगाया राहगीर बने तब से ।
नीशीत जोशी 26.06.12
વાહ રે ! ફેસ બુક
વાહ રે ! આ ફેસ બુક.....!!!
અહીંઆ તો સબંધો ની ભરમાર છે,
કોઇ ભાઇ તો કોઇનો અહી પ્યાર છે,
કોઇ બનાવે છે બેન તો કોઇ દીદી,
પણ અહી તો બધા સૌના યાર છે,
કોઇ કરે ટેગ તો કોઇ કરે ટીપ્પણ,
ન ગમે ત્યારે મન પરનો ભાર છે,
કોઇ કરે કવિતા તો કોઇ કહે ગઝલ,
હુન્નર દેખાડનાર અહી અપરંપાર છે,
કોઇના નામે પોતે લખનાર કમ નથી,
કંઇ કહો તો તેની ભાષા ધારદાર છે,
વાહ રે ! ફેસ બુક ,શું કહુ તુજને હવે,
ઘણા તો અહી આદતથી લાચાર છે.
નીશીત જોશી 25.06.12
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