રવિવાર, 9 ઑક્ટોબર, 2011

बीन तेरे मोरे कान्हा


कैसे कटाई राते बीन तेरे मोरे कान्हा,
कैसे बहकी बाते बीन तेरे मोरे कान्हा,

पनघट पर खडी करु तेरा ईन्तजार मै,
कैसे पनीया पाते बीन तेरे मोरे कान्हा,

एक बंसी थी जीसे सुन सूधबूध खोती,
कैसे होंशमें आते बीन तेरे मोरे कान्हा,

अब तो तस्वीर भी तेरी रुठी रुठी लगे,
कैसे मुश्कान लाते बीन तेरे मोरे कान्हा,

घर आंगन टांग रखी थी मटकी मैनेभी,
कैसे माखन खाते बीन तेरे मोरे कान्हा,

कोई दुजा नही भाता अब इस दिलको,
कैसे घ्ररको जाते बीन तेरे मोरे कान्हा ।

नीशीत जोशी 07.10.11

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો