ना अब मेरे मंन्जरका कोई नाम है,
ना तो वो सीतमगरका कोई नाम है,
रुहने दिलमे बना लिया आशियाना,
अब न दुजे राहगुजरका कोई नाम है,
हाथकी लकिरोकी बाते ही करते हो,
बीगैर तेरे ना तकदीरका कोई नाम है,
आंखोकी लहेरोने मचा रखा है कहर,
ना ओर किसी समंदरका कोई नाम है,
मेरे सांसोसे जुडे हो तुम,तेरा ही नाम,
तेरे चरण,तेरे ही दरबारका कोई नाम है ।
नीशीत जोशी 03.10.11
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