ગુરુવાર, 6 ઑક્ટોબર, 2011

नाम


ना अब मेरे मंन्जरका कोई नाम है,
ना तो वो सीतमगरका कोई नाम है,

रुहने दिलमे बना लिया आशियाना,
अब न दुजे राहगुजरका कोई नाम है,

हाथकी लकिरोकी बाते ही करते हो,
बीगैर तेरे ना तकदीरका कोई नाम है,

आंखोकी लहेरोने मचा रखा है कहर,
ना ओर किसी समंदरका कोई नाम है,

मेरे सांसोसे जुडे हो तुम,तेरा ही नाम,
तेरे चरण,तेरे ही दरबारका कोई नाम है ।

नीशीत जोशी 03.10.11

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો