શુક્રવાર, 1 સપ્ટેમ્બર, 2017
है ये दर्दे जफ़ा कई दिन से
2122-1212-22
है ये दर्दे जफ़ा कई दिन से,
मिल रही है सजा कई दिन से !
वस्ल का तो किया था वादा पर,
मुन्तज़िर ही रखा कई दिन से !
अब कहाँ मंजिलो को ढूँढूँ मैं,
रास्ता खो गया कई दिन से !
प्यार में लाजिमन मेरे थे वोह,
फिर भी डरता रहा कई दिन से !
घाव जो जो दिए है दिलबर ने,
बन गये लादवा कई दिन से !
लादवा ज़ख़्म,और दिल ग़मगीन,
जी नहीं लग रहा कई दिन से !
जिंदगी प्यार बिन नहीं कुछ भी,
शोर फिर क्यों मचा कई दिन से !
नीशीत जोशी 'नीर'
(जफ़ा- सितम,लाजिमन- निश्चित रूप से,लादवा- नाइलाज)
खुद मुहब्बत को जताने आ गये !
2122-2122-212
क्या कहूँ कैसे जमाने आ गये,
राहज़न रस्ता दिखाने आ गये !
फिर कहाँ बाक़ी रहा अब होंश ही,
जब वो आँखों से पिलाने आ गये !
कैसे पाऊँगा मैं मंज़िल जब के वो,
हमसफर बनकर सताने आ गये !
जब क़फस का दर्द दिल में जा चुभा,
हम परिंदे को उडाने आ गये !
तन के ज़ख्मों को सहा हँस के सदा,
ज़ख्म-ए-दिल मुझको रुलाने आ गये !
सुनके अपनी बेवफाई की ग़ज़ल,
खुद मुहब्बत को जताने आ गये !
जब मिला औरों से धोखा इश्क़ में,
'नीर' से वो दिल लगाने आ गये !
नीशीत जोशी 'नीर'
दर्द जिगर में सोया होगा
ऐसा हर एक शख्श यहाँ ग़मज़दा मिला
221-2121-1221-212
ऐसा हर एक शख्श यहाँ ग़मज़दा मिला,
जैसे कि मर्ज़ कोई उसे लादवा मिला!
कैसे सहा ग़मों के वो नश्तर न पूछिये,
जब भी मिला तो दर्द का एक काफ़िला मिला!
कुछ पल भी जी सका न मैं चैन ओ सुकून से,
हर इक क़दम पे मुझ को नया हादसा मिला!
छाले तो पाँव में भी पड़े उम्र भर मगर,
हद्द तो ये है कि दिल में मुझे आबला मिला!
करते रहे थे इश्क़ रवायत को भुल कर,
लेकीन कभी न प्यार का मुझको सिला मिला!
नीशीत जोशी 'नीर'
(ग़मज़दा-दुखी, लादवा- नाइलाज, आबला-छाला)
होते अगर तुम यार तो
वाह वाही
रू ब रू होने लगी थी वाह वाही,
चश्म तब ढोने लगी थी वाह वाही !
रात उनके ख्वाब भी आने लगे थे,
नींद में खोने लगी थी वाह वाही !
हाज़री दी जब ग़रूर को भूल कर तब,
फूट कर रोने लगी थी वाह वाही !
चाँद शरमाया तुझे ही देखकर जब,
फर्श पर होने लगी थी वाह वाही !
दर्द को मैंने वरक़ पर जब उतारा
बज़्म में होने लगी थी वाह वाही !
नीशीत जोशी 'नीर'
क्यों वो अपनी नजर फिर बचाते रहे ?
212/212/212/212
क्यों वो अपनी नजर फिर बचाते रहे ?
खुद को क्यों आइने से छिपाते रहे ?
एक खता ही तो थी जो हुई थी कभी,
क्यों सरेआम सब को बताते रहे ?
दिल किया है तुम्हारे हवाले मेरा,
फिर भी तडपा के उसको रुलाते रहे !
इश्क को ज़ुर्म माना था तुमने कभी,
ज़ुर्म करने मुझे क्यों बुलाते रहे ?
फैसला था ये कुदरत का फिर क्यों मुझे,
ज़िक्र तुम बेवफा का सुनाते रहे !
इश्क में हिज्र होना तो तय था मगर,
अश्क़ आँखों से फिर भी बहाते रहे !
सामना जब हुआ मेरा दिलबर से तो,
उनको इलज़ाम ही हम सुनाते रहे !
है भरोषा तो बस उस खुदा पर मुझे,
दर्द को 'नीर' दिल में दबाते रहे !
नीशीत जोशी 'नीर'
होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया
तीरगी लेने तुम्हारी मैं उजाला बन गया,
फिर चुरा कर अश्क सारे मैं फसाना बन गया !
नाम जो बदनाम था पहले वो बातें अब नहीं,
मैं तुम्हारे इश्क़ में पागल दिवाना बन गया !
देखना लहरों की ओर अच्छा लगा इतना मुझे,
मैं उन्हे पाने को दरया का किनारा बन गया !
इक मुनाज्जिम ने कहा तन्हा रहोगे तुम सदा,
तबसे तन्हाई से मेरा राब्ता सा बन गया !
महफिलों में रिंद सब मदहोश थे पी कर शराब,
होंठ ही मेरे लिये तो सा'द प्याला बन गया !
नीशीत जोशी
(तीरगी - अंधेरा,मुनज्जिम- ज्योतिषी,रिंद- शराबी)
सोचना मत और रोना मत अब
सोचना मत और रोना मत अब,
रात तन्हा हो तो सोना मत अब !
प्यार तरदीद कर दिया जब तुमने,
दिल तुम्हारा तुम तो खोना मत अब !
लोग दीवाने हुए जाते है,
नफ़रतों का बीज़ बोना मत अब !
प्यार की कोई करे तनक़ीद भी,
पर कहीँ ये इश्क़ खोना मत अब !
तुम मिरे हो फिर मिरे ही रहना,
और तुम कोई के होना मत अब !
नीशीत जोशी
(तरदीद=रद्द करना, तनक़ीद=आलोचना)
बज़्म में तीरगी का है आलम
2122-1212-22
जब उसे प्यार याद आता है,
गीत मेरे वो गुनगुनाता है !
हिज्र का जिक्र आ गया होगा,
सुन उसीको वो तिलमिलाता है !
बागबाँ है रुठा ऱुठा जब से,
फूल भी खिल कहाँ तो पाता है !
हम रहें सामने उन्ही के ही,
पर वो दूरी सदा बनाता है !
शह्र खामोश है, मैं हूँ तन्हा,
ग़म भी दर्द अब बढाता है !
मंज़िलें और तो रही होगी,
कौन अब वो उफ़क दिखाता है !
बज़्म में तीरगी का है आलम,
'नीर' ही दिल यहाँ जलाता है !
नीशीत जोशी 'नीर'
रवायत तो कुछ निभायेगी
1212-1122-1212-22
वो बेवफा हैै,रवायत तो कुछ निभायेगी,
लगा के दिल वो मेरा प्यार तो बढायेगी!
कहाँ कहाँ मैं तो भटका उन्हे ही पाने को,
किसे कहूँ कि वो हर राह में सतायेगी!
दिवानगी कि भी हद पार करके देखा जब,
पता न था कि मुहब्बत मुझे रुलायेगी!
न कोई प्यार करेगा उसे मेरे जैसे,
उसे भी वस्ल कि बातें तो याद आयेगी!
कभी उसे भी सजा प्यार में मिलेगी यूँ,
कि फिर उसे भी वो हर शब सदा जगायेेगी!
रही न कोई चरागों कि रोशनी वो जब,
वो महफिलों में पढी फिर भी नज़्म जायेगी!
अभी तो घाव नया फिर दिया गया दिल को,
ये दिल के दर्द से अब 'नीर' को जलायेगी !
नीशीत जोशी 'नीर'
प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं
2122-2122-2122-212
क़त्ल करते थे वो आँंखो से मगर क़ातिल न थे,
प्यार करते थे उन्हे हम उसमें तो गाफ़िल न थे !
खो रहे थे इंतजारी के तसव्वुर में कभी,
प्यार की वो गुफ्तगू से हम भी क्या कामिल न थे ?
लग रहा है अब समुन्दर भी अकेला क्या वहाँ,
इश्क़ करती उन लहेरें और क्या साहिल न थे ?
अब तो दिल की बेकरारी बढ गयी है प्यार में,
इल्तज़ा हमने रखी ख़त की मगर हामिल न थे!
माँगने से प्यार दिलबर से यहाँ मिलता नहीं,
प्यार के क़ाबील अब कोई भी नादाँ दिल न थे !
नीशीत जोशी 'नीर'
(गाफ़िल - असावधान, कामिल - पूरा जानकार, साहिल - किनारा, हामिल - समाचार ले जानेवाला)
काश कोई ख़्वाब लिखते,
2122-2122
काश कोई ख़्वाब लिखते,
ख़्वाब में अहबाब लिखते !
करके तुम दीदार दिलबर,
फिर उसे महताब लिखते !
अश्क से भर जो गया दिल,
भूल कर सब, आब लिखते !
हो कहानी में जगह तो,
इश्क का एक बाब लिखते !
रह नहीं सकते अकेले,
प्यार में बेताब लिखते !
जब्त में जज्बात हो फिर,
आ रहा शैलाब लिखते !
है सुख़नवर 'नीर' तो फिर,
कुछ ग़ज़ल नायाब लिखते !
नीशीत जोशी 'नीर'
રવિવાર, 23 એપ્રિલ, 2017
क्या करे कोई !
221-2121-1221-212
अब क्या किसी के इश्क का दावा करे कोई,
करता नही है कोई कि चर्चा करे कोई !
क्या जुर्म है ये इश्क?करो सात जन्म तक,
चाहे सता सता के भी रूठा करे कोई!
आँधी से भी चराग बुझाये न अब बुझे,
फिर महफिलो में क्यों सर नीचा करे कोई !
हर वस्ल बाद हिज्र का होना तो तय है तब,
फिर वस्ल का भी क्यों तो ये वादा करे कोई !
जिन्दा रखे है घाव, दिखाए किसे किसे,
बँधे तबीब के हाथ यहाँ, क्या करे कोई !
नीशीत जोशी
इश्क में कुछ तो अलामत ही सही
इश्क में कुछ तो अलामत ही सही,
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही !
हो तुझे परहेज़ गर फिर झूठ से,
गुफ्तगू में तब सदाकत ही सही !
आ नहीं सकते वो अब जब वस्ल पर,
दरमियाँ है ग़म,फलाकत ही सही !
खुश रहे नाराज हो कर हम बहुत,
कुछ हमारी ये अलालत ही सही !
बज़्म में खामोश हैं ये सोच कर,
कुछ तसव्वुर में बगावत ही सही !
शायरी की साहिरी तुम सीख लो अब,
महफिलों में फिर वो दावत ही सही !
है तलातुम इस जहन में क्या करें,
हिज्र का दिल में दलालत ही सही !
नीशीत जोशी
(अलामत-sign,अदावत-hatred, सदाकत- true,फलाकत-misfortune,अलालत-sickness, साहिरी-जादूगरी, दलालत-proof)
तीर जब रोज़ चल रहें हैं अब
जब मुहब्बत में दर्द पाना है,
किस लिए दिल यहां लगाना है !
इम्तिहाँ प्यार की कहाँ तक दें,
जब सवालों में ही फसाना है !
पी लिया जह्र सोचकर ये जब,
मौत ही आखरी ठिकाना है !
रातभर चैन से जो सोते हो,
ख्वाब अक्सर मेरे ही आना है !
बेवफा तुम नहीं तो क्या हो फिर,
वो खयानत भी क्या बहाना है ?
करते हो प्यार जब मुझे तुम तब,
शर्म में वक्त क्यों गवाना है ?
तीर जब रोज़ चल रहें हैं अब,
हर नया घाव 'नीर' खाना है !
नीशीत जोशी 'नीर'
और क्या क्या ?
प्यार यादें फिर वफा है और क्या क्या ?
शाम की ये सब दवा है और क्या क्या ?
राज़ तो है इस सुखन के कुछ मेरे भी,
उसमें वादे है जफ़ा है और क्या क्या ?
अश्क बहते है यहाँ आँखो से फिर अब,
ये जिगर भी सह रहा है और क्या क्या?
गुल के ही मानिंद तो सीखा था जीना,
ये अदा है या खता है और क्या क्या ?
अब नहीं कोई किसी का है यहाँ पर,
बस बची ये तेरी दुआ है और क्या क्या ?
कारवाँ तो बन गया था उस सफर में,
अपनी मंजिल लापता है और क्या क्या ?
तीरगी में ही कटी जब 'नीर' हर शब,
ख्वाब भी तेरा खफा है और क्या क्या ?
नीशीत जोशी 'नीर'
दौर-ए-हाजिर की ये कहानी है!
क्या यही इश्क की निशानी है,
हुस्न उस में है और जवानी है!
है मुहब्बत में अब हवस दाखिल,
दौर-ए-हाजिर की ये कहानी है!
इश्क में नाम उसका भी है आज,
जिसने सहरा की खाक छानी है!
सच बताने की है कहाँ हिम्मत,
हार को जीत अब बतानी है!
देखकर ज़ुल्म दिल नहीं रोता,
आजकल खून भी तो पानी है!
कुछ तो ऐसे हैं जो खिजाँ में भी,
कहते फिरते हैं रुत सुहानी है!
जिंदगी में खुशी है ग़म भी 'नीर',
ये कहावत बहुत पुरानी है !
नीशीत जोशी 'नीर'
दर्द के कोई बहाने यूँ न होते !
2122-2122-2122
तेरी दुन्या के दिवाने यूँ न होते,
महफिलों में वो तराने यूँ न होते !
ये तमाशा भी न होता प्यार का तब,
बाद मरने फिर शयाने यूँ न होते !
प्यार से तो बेखबर था मैैं उन्हीके,
जानते गर मुझ पे ताने यूँ न होते !
दीद से मिलती खुशी मुझको अगरचे,
दिलशिकस्ता के ये माने यूँ न होते !
बात हो जाती मेरी तुझसे उसी दिन,
दर्द के कोई बहाने यूँ न होते !
नीशीत जोशी
जिंदगी पल पल हँसाती ही रही
2122-2122-212
जिंदगी पल पल हँसाती ही रही,
प्यार में जीना सिखाती ही रही !
मौत आती है बिना दस्तक दिये,
सोच उसकी पर डराती ही रही !
खोजते ही रह गये हम शाद पल,
याद आ कर फिर सताती ही रही !
मेरी तन्हाई बदौलत है तेरे,
शाम डर से मूँह छिपाती ही रही !
वो कभी तो प्यार कर लेगा मुझे,
इल्तज़ा दिल को लुभाती ही रही !
भूलना आसाँ नहीं होता कभी,
बात वो यादें दिलाती ही रही !
महफिलों में 'नीर' का अब क्या रहा,
वो ग़ज़ल सब कुछ बताती ही रही !
नीशीत जोशी 'नीर'
हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए !
२१२२ २१२२ २१२
वो कभी तन्हा सफर में खो गए,
कैद फिर मेरे तसव्वुर हो गये !
तोडकर दिल फिर सुकूँ उनको मिला,
देख सादाँ हम उसे खुश हो गए !
वस्ल की उम्मीद उसने छोड़ दी,
हिज्र के ग़म को बढ़ा कर वो गए !
शाम तन्हा रात भी खामोश थी,
ख्वाब ने ओढा फलक फिर सो गए !
मुद्दतो से वो रहे खामोश पर,
गुफ्तगू को *बेबहा लब हो गए ! *बहुमूल्य
नीशीत जोशी
मैं जो मरता हूँ, मरोगे तुम भी क्या?
2122-2122-212
प्यार है तुमसे, करोगे तुम भी क्या?
मैं जो मरता हूँ, मरोगे तुम भी क्या?
बेवफा तुम हो नहीं सकते कभी,
खुदकुशी से अब, डरोगे तुम भी क्या?
मत झुको तुम, नफरतो के सामने,
प्यार में लेकिन, झुकोगे तुम भी क्या?
हौसला है, तो बुलंदी कुछ नहीं,
गर मिले तो, रख सकोगे तुम भी क्या?
तू नहीं, यादें सताती है तेरी,
दिल की वीरानी, सहोगे तुम भी क्या?
आ गया, वादा निभाने का ही पल,
गुफ्तगू करने, रुकोगे तुम भी क्या?
रातभर जागा रहा, दिल 'नीर' का,
दूर करने ग़म, उठोगे तुम भी क्या?
नीशीत जोशी 'नीर'
રવિવાર, 12 માર્ચ, 2017
कोई ठोकर लगी है क्या ?
221-2121-1221-212
दुनिया के खत्म होने की आयी घडी है क्या ?
ग़ैरत की शम्आ चारों तरफ बुझ गयी है क्या ?
हर सिम्त कत्ल ओ खून का मंजर गवाह है,
शैतान से भी बढ के नहीं आदमी है क्या ?
मज़हब के नाम पर जो लडाते हैं हर जगह,
खुद उन से पूछिए के यही बंदगी है क्या ?
अपने तमाम फर्ज शनाशी को छोड कर,
बेफिक्र जिंदगी भी कोई जिंदगी है क्या ?
कुछ पल की जिंदगी है, मुहब्बत से जी ले यार,
नफरत में कोई एक भी सच्ची खुशी है क्या ?
कल तक तो हँस रहे थे ज़माने पे तुम निशीत,
संजीदा आज हो, कोई ठोकर लगी है क्या ?
निशीत जोशी
(ग़ैरत = शर्म ओ हया, फर्ज शनाशी= फर्ज की समझ)
अपनों को भुला डाला है दौलत की हवस ने
221-1221-1221-122
इंसान तो है सब कोई दिलदार नहीं है,
ये शह्र है कैसा की यहाँ यार नहीं है,
अपनों को भुला डाला है दौलत की हवस ने,
रिश्ते हैं ज़रूरत पे टिके, प्यार नहीं है,
महफिल में सुनी सब की ग़ज़ल हमने भी लेकिन,
इस बज्म में तुम सा कोई फनकार नहीं हैं,
ये अब के बरस कैसी हवा आयी चमन में,
गुलशन तो कोई इक भी गुलजार नहीं है,
तुम दिल को कभी चोट न पहुंचाओ मेरे दोस्त,
ये फूल सा नाज़ुक है कोई खार नहीं है !
नीशीत जोशी
जिंदगी फिर मुझे क्यों डराती रही
जान जाती रही,रात आती रही,
याद आ कर मुझे फिर सताती रही,
जब्त जज्बात थे,चुप रहे लब मेरे,
आँख ही थी जो सब कुछ बताती रही,
आजमातेे रहे इश्क को इस कदर,
जिंदगानी मेरी लडखडाती रही,
तुम बने फूल तो मैं भी भँवरा बना,
तुम मुझे बागबाँ फिर बनाती रही,
रो पडा आसमाँ दास्ताँ सुन तेरी,
फर्श पे फिर कयामत वो ढाती रही,
मैंने दे कर खुशी ले लिये सारे ग़म,
जिंदगी फिर मुझे क्यों डराती रही,
चेहरे पे खुशी और दिल में थे ग़म,
बेबसी 'नीर' का दिल जलाती रही !
नीशीत जोशी 'नीर'
सहारा तो बने कोई
बुराई ही करे कोई,
मगर सच तो कहे कोई।
मुहब्बत देख कर अपनी,
जो जलता हो, जले कोई।
मुहब्बत एक दरिया है
कोई डूबे , तरे कोई।
इलाजे इश्क़ मुमकिन है
अगर दिल में बसे कोई !
अंधेरो के सफ़र में भी,
मेरा साथी बने कोई !
बिछे हैं राह में काँटे
भला कैसे चले कोई !
हमेशा मुन्तज़िर है 'नीर',
सहारा तो बने कोई।
नीशीत जोशी 'नीर'
अल्फाज़ मिट रहे हैं जो मेरी क़िताब से
221 2121 1221 212
अल्फाज़ मिट रहे हैं जो मेरी क़िताब से,
किसने जगा दिया है मुझे मेरे ख़्वाब से !
बोला अभी नहीं था वो मेरे मुहिब्ब को,
किसने बताया क्या पता है किस हिसाब से !
आते रहे खयाल सताने मुझे यहाँ,
किसको कहें बचाये मुहब्बत के ताब से !
रहते नहीं निशाँ कभी वो रेत पे यहाँ,
चाहे रखे कदम वहाँ जो हों गुलाब से!
बातें अभी हुई थी ज़रा प्यार की शुरू,
किस रश्क ने जगा दिया है आज ख्वाब से !
किसने सुना वो ज़ख्म का कितना है दर्द अब,
देकर मुझे वो ज़ख्म नवाजा खिताब से !
वाईज़ कह दिया है वो खामोश 'नीर' को,
बहते हुए वो अश्क़ को कहते है आब से !
नीशीत जोशी 'नीर'
हाथ बटाना तो चाहिए
રવિવાર, 12 ફેબ્રુઆરી, 2017
शब भर हक़ीक़त छोड़िये
2212 2212 2212 2212
शब भर हक़ीक़त छोड़िये अब ख़्वाब भी होता नहीं,
फिर भी उसी की आस में मैं रात भर सोता नहीं !
आसाँ नहीं है प्यार को करना मुक़म्मल इस तरह
कोई भी अबतो प्यार का इक बीज भी बोता नहीं !
कैसे जसारत पाए हम यह प्यार पाने के लिए,
उस बेवफा के प्यार का अब बोझ दिल ढोता नहीं !
कोई घरोंदा है नहीं दिल की हिफाजत जो करें,
ताहम ये दिल भी दर्द से अब तो यहां रोता नहीं !
खानातलाशी तो बहुत कर दी यहां अब बस करो,
तस्कीन है इस बात का अब दिल कहीं खोता नहीं !
नीशीत जोशी
(जसारत - हिम्मत, ताहम-तो भी, खानातलाशी-खोई चीज की छीनबीन करना, तस्कीन-सन्तोष)
ढाओ न मुझ पर यूँ सितम
क्या डरना
अगर उतरें है दरिया में तो गहराई से क्या डरना,
किसीसे लग गया हो दिल तो रुसवाई से क्या डरना !
चलोगे गर अंधेरो में जला कर उन चरागो को,
न कोई गर नजर आये तो परछाई से क्या डरना !
तेरे दीदार से अब होश ही सब उड गये दिलबर,
रहा बेहोश मैं हूँ जब तो पुरवाई से क्या डरना !
हमारे प्यार की बातों पे हंगामा तो है बरपा,
हुई है यूँ मुहब्बत जब तो आश्नाई से क्या डरना !
हो जब तुम साथ फिर हरपल तो लगता है मुझे दिलकश,
हुआ है प्यार जब दिल से तो रानाई से क्या डरना !
खुदा माना है जब तुझको ज़ुकेंगे प्यार के आगे,
मुहब्बत है मुझे, उसकी जबीँसाई से क्या डरना !
हमारी जब जला कर खाक कर दी है ये बस्ती तब,
वो तन्हाई में कैसी भी हो यकजाई से क्या डरना !
नीशीत जोशी
हर शाम को
2212-2212-2212
यादें तेरी आने लगी हर शाम को,
आकर वो शरमाने लगी हर शाम को !
तुम फिक्र करते हो उदासी की यहाँ,
अब रूह भी घबराने लगी हर शाम को !
वो याद भी सजकर मिली थी फिर मुझे,
वो दर्द सहलाने लगी हर शाम को !
कोई नजर तो डालकर देखो जरा,
आँखें भी तडपाने लगी हर शाम को !
पल पल सताती है फिज़ा मुझको यहाँ,
सूरत भी मुरझाने लगी हर शाम को !
नीशीत जोशी
बन गया
तीरगी लेने तुम्हारी, मैं उजाला बन गया,
फिर चुरा कर अश्क सारे, मैं फसाना बन गया !
नाम जो बदनाम था पहले, वो बातें अब नहीं,
मैं तुम्हारे इश्क़ में, पागल दिवाना बन गया !
देखना लहरों की ओर, अच्छा लगा इतना मुझे,
मैं उन्हे पाने को, दरया का किनारा बन गया !
इक मुनाज्जिम ने कहा, तन्हा रहोगे तुम सदा,
तबसे तन्हाई से मेरा, राब्ता सा बन गया !
महफिलों में रिंद सब, मदहोश थे, पी कर शराब,
चश्म ही मेरे लिये तो, सा'द प्याला बन गया !
नीशीत जोशी
(मुनाज्जिम- ज्योतिषी)
कुछ तो और थी
2122-2122-2122-212
लब रहे गूंगे मगर वो बात कुछ तो और थी,
फिर हुई जो आँख से बरसात कुछ तो और थी,
वो तबस्सुम ने रखा था बाँध कर के चाँद को,
जश्न में उसने गुजारी रात कुछ तो और थी,
मरहबा कहने को मशरूफी जो कोई हो गयी,
आज उनके घर की नक्शाजात कुछ तो और थी,
खेलते बाज़ी रहे हम रोज उनके साथ में,
जीत लेते हम मगर वो मात कुछ तो और थी,
ये सजा है या सताने का तरीका बोल तू,
प्यार करके दिल पे करती घात कुछ तो और थी !
नीशीत जोशी
हम वफा करते
2122-1212-22
वो खुदा से कोई दुआ करते,
और मुझसे न फिर दगा करते !
दर्द की इंक़िज़ा भी हो जाती,
हमसफर प्यार में रहा करते !
इश्क का रोग जब लगा सबको,
मेरे दिलबर मेरी दवा करते !
याद आते कभी वो बीते पल,
अश्क आँखो से फिर बहा करते !
वो अगर बेवफा है फितरत से,
इश्क़ में सिर्फ हम वफा करते !
नीशीत जोशी
(इंक़िज़ा - समाप्ति)
आवाज देना तुम मुसव्विर की तरह
2122-2122-2122-212
हम तेरे कूचे में आए है मुसाफिर की तरह,
क्यों मुझे फिर तुम बुलाते हो वे काफिर की तरह,
गर तुझे कोई मेरा ही अक्स हैराँ भी करे,
तब मुझे आवाज देना तुम मुसव्विर की तरह,
आजमाते कह दिया था मुझको जाबिर भी कभी,
फिर रखा भी है मुझे कोई जवाहिर की तरह,
बन गया कादिर मेरा दिल अब हुनर कोई दिखा,
की लगे नादान ये दिल सबको नादिर की तरह,
महफिलो में तुम गज़ल कहते हो, साहिर तो नहीं,
लोग कहते है कि पढता है मुकर्रिर की तरह !
नीशीत जोशी
(काफिर -an infidel,sweetheart, मुसव्विर- painter,जाबिर- cruel,जवाहिर- jewels,कादिर- powerful ,नादिर- precious,साहिर -magician, मुकर्रिर- speaker
आँखों का जादू
1222-1222-122
दुपट्टा तेरा जो लहरा गया है,
सुरूर अब तो फ़िज़ा में छा गया है !
चमन में खुश्बुएं कलियों की महकीं,
बहारो का ये मौसम आ गया है !
चरागो ने कि रोशन महफिलें जब,
बुझे को भी तो जलना आ गया है !
कहाँ तक फिर वो छुपता महफिलों में,
नकाबो में भी पहचाना गया है !
नशा होता नहीं बादा से भी अब,
तेरी आँखों का जादू छा गया है !
नीशीत जोशी
हम क्या करें?
२१२ २१२ २१२ २१२
मंझिलें गर भटक जाए,हम क्या करें?
दिल कहीं फिर बहक जाए,हम क्या करें?
क्या हुई बात कोई बताता नहीं,
अश्क़ कोई छलक जाए, हम क्या करें?
तोड़ कर दिल मेरा अब सुकूँ है उसे,
जिक्र से दिल दहक जाए, हम क्या करें?
पाँव भी लडखडाये मेरी वस्ल पे,
हिज्र से दिल धडक जाए,हम क्या करें?
तोड़ कर फूल रौंदा गया पाँव से,
फिर भी दिल जो महक जाए,हम क्या करें?
प्यार कर के निभाने का दस्तूर है,
बेवफा बन सरक जाए,हम क्या करें?
शर्म आती है अब तो तुझे देख कर,
'नीर' गर दिल चहक जाए,हम क्या करें?
निशीथ जोशी 'नीर'
आराम नहीं है
1221-122 , 1221-122
किया प्यार है जब से, वो आराम नहीं है,
तेरी सोच के सीवा, मुझे काम नहीं है!
तेरी याद करेगी, परेशान मुझे अब,
उदासी के अलावा, वो इनाम नहीं है!
तेरे साथ कभी तो,मेरा नाम जुडेगा
मेरा प्यार बहुत है, जो बदनाम नहीं है !
मुझे दर्द मिला है, तेरे प्यार में दिलबर,
मगर प्यार पे कोई, वो इल्जाम नहीं है !
बहुत शाम बिताई, न समझे कभी तुम,
मुहब्बत का चलन वो, अभी आम नहीं है !
नीशीत जोशी
तो और क्या करता
1212-1122-1212-22
उसे मैं प्यार ना करता, तो और क्या करता,
करीब गर मैं न लाता, तो और क्या करता !
चिराग को भी बुझाकर, किया अंधेरा जब,
मैं अपना घर ना जलाता, तो और क्या करता !
मैंने उसे बुलाया, मगर न आया वोह,
मैं प्यार में न बुलाता, तो और क्या करता !
कहा उसे कि मेरे पास ही,रखो दिल तुम,
वो मुस्कुरा के न जाता, तो और क्या करता !
खयाल से ही उसे,प्यास फिर लगी होगी,
वो प्यास भी न बुझाता, तो और क्या करता !
कभी सितम तो, कभी ज़ख्म दे रहा था वोह,
मैं फिर सितम ना जताता, तो और क्या करता !
वो गुफ्तगू भी करे 'नीर', फिर करे हैराँ,
मैं गर करीब ना आता, तो और क्या करता !
नीशीत जोशी
तलबग़ार कर दिया जाए
1212-1122-1212-22
किया है प्यार तो इजहार कर दिया जाये,
तुम्हें भी इश्क़ का बीमार कर दिया जाये !
बना दिया है मेरे दिल को तुमने दीवाना,
चलो तुम्हें भी तलबग़ार कर दिया जाए !
चला न जाए ये दिल अजनबी के हाथों में,
मुहिब्ब को पहरेदार कर दिया जाये !
कमाल का है करिश्मा ये दिल लगाने का,
चलो उसे भी कलाकार कर दिया जाये !
खफा हुआ है जो दिल आज दूर हो कर भी,
ये शब को क्यों फिर दुश्वार कर दिया जाये !
नीशीत जोशी
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