तु जब देता है बेहिसाब देता है,
बुरे कर्मोकी सजा भी कर्मानुसार देता है,
मट्टी के ढेर को जान फुक के इन्सान बनाया,
आज वही इन्सान तुजे कहां समजता है,
एक तिनकाभी नही हिलता तेरे इशारे बिना,
सब हमने किया 'इन्सान' वही समजता है,
भुल गये बनाया जतनसे तुने उसे,
तुजसे ही मुकाबला करने की सोचता है,
कलियुग मै सिर्फ एक नाम भजनेसे तेरा,
हजारो नाम का फल तु उसे देता है,
करता है वो इन्सान आज सोदाबाजी तुजसे,
तुजे ही खरीदने की कोशीश वह करता है ।
नीशीत जोशी
ગુરુવાર, 19 ફેબ્રુઆરી, 2009
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