कितने परवाने जले राज ये पाने के लिये,
शमा जलने के लिये है या जलाने के लिये,
रोनेवाले तुजे रोने का सलिका भी नही,
अश्क पाने के लिये है या बहाने के लिये,
तुम तो नादान हो,ना समजोगे ये झालिम दुनीया,
सर चडा लेती है नजरो से गीराने के लिये नही,
आज करता हुं ये दर्द-ए-गम की शीकायत तुम से,
रोज आ जाती है कमबक्त सताने के लिये,
मुजको मालुम था आप आयेंगे मेरे घर पर,
खुद चला आया हुं मै याद दिलाने के लिये,
इश्क ने राज ये अब तक ना बताया है हमे,
सर जुकाने के लिये है या कटाने के लिये ।
<<< ॰ नीशीत जोशी ॰ >>>
ગુરુવાર, 19 ફેબ્રુઆરી, 2009
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