ગુરુવાર, 19 ફેબ્રુઆરી, 2009

“मां”

[1] प्रेम को साकार होने का मन हुआ और मां का दर्शन हुआ ।
[2] "मां कैसी हो "-इतनाही पुछा उसे मिल गया, सब कुछ ।
[3] जिस मां बाप ने बोलना सिखाया था, वह बडा होकर मां बाप को मौन रहना सिखाता है ।
[4] मां बाप को सोने से न मढो तो चलेगा, हीरे से न जडो तो चलेगा । पर उनका जिगर जले और
अंतर आंशु बहाये---यह कैसे चलेगा ।
[5] मां और क्षमा दोनो एक है, क्यों कि माफ करने में दोनो नेक है ।
[6] जिस दिन तुम्हारे कारण मां बाप के आंखो में आंसु आते है--याद रखना उसदिन तुम्हारा किया
सारा धर्म आंसु में बह जाता है ।
[7] जो मस्ती आंखो में है--मदिरालय में नही, अमीरी दिल की कोइ महालय में नही,शीतलता
पाने के लिये कहां भटकता है मानव, जो मां की गोद में है वह हिमालय में नही ।
[8] उपर जिसका अंत नही उसे आसमा कहते है, जहां में जिसका अंत नही उसे मां कहते है ।
[9] तुझे अंगुली पकडकर जो मां बाप स्कूल ले जाते थे, उस मां बाप को बुढापे के
सहारा बनकर मंदिर ले जाना--शायद थोडा सा तेरा फर्ज थोडा सा कर्ज पूरा हो जाये ।

ટિપ્પણીઓ નથી:

ટિપ્પણી પોસ્ટ કરો